Vipin Bansal

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उदर कुंड

कविता = ( उदर कुंड )

उदर कुंड में क्यों धधकाई !
भूख की यह प्रचंड ज्वाला !
सब कुछ हुआ सुहा मेरा !
किस -‌ किस का दूं हवाला !
बस कश्मकश रोटी की !
और आहुति सपनों की !
तेरी नज़र में ज़िंदगी !
मेरी नज़र में काग़ज़ के फूलों की माला !
उदर कुंड में क्यों धधकाई !
भूख की यह प्रचंड ज्वाला !

उदर कुंड तक ही खेंची तून्हें !
जीवन की मेरी रेखा !
उदर कुंड से बहार निकलकर !
मैंने न कुछ भी देखा !
उदर कुंड में रहा समाया !
उदर कुंड से बहार न आया !
दिन-रात जपी बस मैंने !
रोटियों की है माला !
उदर कुंड में क्यों धधकाई !
भूख की यह प्रचंड ज्वाला !

सॉंसों से ज्यादा ग़म मिले !
जिए कम रोज़ मरे !
रोटियों के मरघट पर !
सपने जले !
कंधे भी अब झुकने लगे !
कांधा देते दुखने लगे !
जिस्म नहीं रूह को मारा  !
इस घर का निकला दिवाला !
उदर कुंड में क्यों धधकाई !
भूख की यह प्रचंड ज्वाला !

जिस्म भी देखो जेल बना !
साँसों की सलाखों में रहना पड़ा !
यह जीवन भी एक बददुआ !
हमको मिली ये कैसी सज़ा !
सांसें बोतल में !
मौत ए नशा !
मुक़द्दर मेरा क्यों है बिगाड़ा !
साँसों के बदले मौत ए प्याला !
उदर कुंड में क्यों धधकाई !
भूख की यह प्रचंड ज्वाला !

( विपिन बंसल )

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10 Comments

shweta soni

05-Sep-2022 04:17 PM

Bahut achhi rachana

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Abhinav ji

05-Sep-2022 09:31 AM

बहुत खूब

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Tariq Azeem Tanha

04-Sep-2022 11:26 PM

शानदार

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